उत्तरप्रदेश
चुनौतियों से भिड़ने और पार पाने की कला के महारथी थे मुलायम, जलाकर रखी समाजवादी मशाल-: ज़ैनब फ़ातिमा
फिरोज खान, यूपी हेड उत्तरप्रदेश
मुलायम सिंह यादव के निधन से यक़ीनन सियासत के एक युग का अवसान हो गया। साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकले व्यक्ति जिसकी जड़ें पहलवानी में थीं, ने सियासत के अख़ाड़े में ख़ूब दांव-पेंच आज़माए। जनेश्वर मिश्र जैसे धुरंधर व्यक्तित्व के साथ उन्होंने सियासत में समाजवाद की मशाल को जलाकर रखा। आम लोगों के बीच अपने सियासी संघर्ष की यात्रा को मुलायम सिंह ने आगे बढ़ाया। उत्तरप्रदेश सूबे की सियासत में आज सामाजिक रूप से हाशिये के लोगों का सियासी प्रतिनिधित्व उभरकर आया है तो उसके पीछे मुलायम सिंह जैसे नेता की मुख्य भूमिका रही जिन्होंने ज़मीनी तौर पर सियासत की इस कठिन लड़ाई को लड़ा है। अपनी भाषा, अपने वेश, अपने विषय, अपने समाज और अपने गांव को सत्ता की कालीन पर बिछा देने की ताक़त मुलायम सिंह जैसे नेता ही रखते हैं। नेताजी एक बेहद सरल, सहज उम्दा मिज़ाजी शख्सियत के मालिक थे। लोगों के विषयों को सुनना उनकी रुचि में था। नेताजी की सियासत में दंभ व अहंकार के लिए कोई जगह नही थी, लेकिन एक पहलवान की तरह चुनौतियों से भिड़ने और पाने की कला उनके भीतर ज़रूर थी। भांति-भांति की सियासत करते हुए लोग कई बार सियासत को केवल करियर मान लेते हैं, लेकिन मुलायम सिंह यादव असली पहलवान थे उन्हें तो जीत हो या हार, हर हाल में अख़ाड़े में डटे रहना ही पसन्द था। इस अख़ाड़े के पहलवान ने हिन्दुस्तान की सियासत के राजपथ पर गांव-गिरांव की मिट्टी को मज़बूत करने का काम किया है। पिछड़ों, शोषितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और वंचितों के उत्थान की दिशा में उनके द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णय विभिन्न सरकारों के लिए एक नज़ीर है। एक छोटे से गांव में जन्म लेकर उत्तरप्रदेश जैसे विशाल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का सफ़र विषमताओं से भरा रहा लेकिन चुनौतियों का सामना करते हुए कुशल नेतृत्व के रूप में नेताजी ने स्वयं को स्थापित किया। ऐसे संघर्षवादी लेजेंड्री, डायनेमिक लीडर की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित।
