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- 22 अप्रैल विश्व पृथ्वी दिवस की पूर्व संध्या पर विशेष “पृथ्वी पर महाप्रलय की दस्तक “
बरेली। पृथ्वी को बचाने की मुहिम के तहत बाईस अप्रैल का दिन पूरे विश्व में पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन् 1970 को पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया, तब से यह सिलसिला लगातार जारी है। यह कहना है अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष में भूगोलविद सुरेश बाबू मिश्रा का।

पृथ्वी पर वैश्विक जलवायु परिवर्तन का संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। आवश्यकता से अधिक कार्बन उत्सर्जन, धरती का बढ़ता तापमान, ओजोनपरत का निरन्तर कम होता आकार और घटती हरियाली वैश्विक जलवायु परिवर्तन के मुख्य घटक हैं। पृथ्वी सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा अनूठा ग्रह है जिस पर जीवन है, परन्तु वैश्विक जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप पृथ्वी पर मानवता का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया है।
वायुमण्डल में सभी गैसें एक निश्चित अनुपात में है। मगर वैश्विक जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप गैसों का यह नाजुक सन्तुलन बिगड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में आक्सीजन की मात्रा में 26 लाख टन की कमी आई है, जबकि कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा में 24 लाख टन की वृद्धि हुई है। आक्सीजन प्राणवायु है उसकी मात्रा में कमी होना गम्भीर चिन्ता का विषय है। अगर हम नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब हमें घर से बाहर जाते समय अपनी पीठ पर आक्सीजन का सिलेण्डर लादकर निकलना पड़ा करेगा।
धरती का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले 10 वर्षों में धरती के औसत तापमान में
0.3 सेन्टीग्रेड से 0.6 सेन्टीग्रेड तक की वृद्धि हुई है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि निकट भविष्य में पृथ्वी के तापमान में और वृद्धि होगी। जिसके परिणाम स्वरुप ग्लेशियरों और ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलने लगेगी।
एक आंकलन के अनुसार भूमण्डल का 2.5 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में विद्यमान है। यदि ग्लेशियरों और धु्रवों पर जमा सारी बर्फ पिघल गई तो समुद्र का जल स्तर इतना बढ़ जाएगा कि पूरी पृथ्वी समुद्र के जल से जलमग्न हो जायेगी और पृथ्वी पर महाप्रलय आ जायगी।
पृथ्वी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम महाप्रलय की आहट को सुनें और वैश्विक जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए सभी लोग मिलकर कारगर कदम उठाएं।
