भारत में सिर की चोट के मामले सबसे ज्यादा, जागरूकता और सुरक्षा है जरूरी

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भारत में सिर की चोट के मामले सबसे ज्यादा, जागरूकता और सुरक्षा है जरूरी

बरेली। सिर की चोटें न सिर्फ अपंगता का बड़ा कारण हैं बल्कि वयस्कों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण भी बन चुकी हैं। सड़क हादसे, गिरने, खेल-कूद या हिंसा जैसी रोजमर्रा की घटनाएं गंभीर और कभी-कभी जानलेवा परिणाम दे सकती हैं। सिर की चोट का मतलब खोपड़ी, मस्तिष्क, स्कैल्प या ब्लड वेसल्स को हुए किसी भी तरह के आघात से है।

मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, साकेत के न्यूरो एंड स्पाइन सर्जरी विभाग के प्रिंसिपल कंसल्टेंट डॉ. वीरेन्द्र कुमार ने बताया कि “भारत में स्थिति चिंताजनक है—यहां हर साल 1 लाख से अधिक मौतें और 10 लाख से ज्यादा गंभीर सिर की चोट के मामले सामने आते हैं। जबकि अमेरिका में 200 में 1 ट्रॉमा पीड़ित की मौत होती है, भारत में यह आंकड़ा 6 में 1 है। सिर की चोट के 60% मामले सड़क हादसों से होते हैं और 15-20% में शराब की भूमिका होती है। सबसे ज्यादा प्रभावित उम्र समूह 20 से 40 वर्ष के युवा होते हैं, जो अधिकतर परिवार के कमाऊ सदस्य होते हैं, जिससे पूरा परिवार आर्थिक संकट में आ सकता है।“
डॉ. वीरेन्द्र ने आगे बताया कि “सिर की चोट के सामान्य कारणों में सड़क दुर्घटनाएं, गिरना, मारपीट, खेलों में लगी चोटें शामिल हैं। उच्च जोखिम वाले समूहों में 4 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग, मेहनतकश श्रमिक और हाई-इंपैक्ट खेलों में शामिल खिलाड़ी आते हैं। चोट के प्रकारों में कंकशन, खोपड़ी की हड्डी टूटना, हेमेटोमा, ब्रेन कंट्यूजन और डिफ्यूज़ एक्सोनल इंजरी शामिल हैं। आम लक्षणों में सिरदर्द, उल्टी, बेहोशी, दौरे और कोमा हो सकते हैं। इसके लिए त्वरित शारीरिक जांच, सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे परीक्षण जरूरी हैं।“
इलाज की गंभीरता के आधार पर रोगी को आराम, निगरानी, या सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। समय पर और उचित प्रबंधन से जीवन बचाया जा सकता है और दीर्घकालिक परिणाम बेहतर होते हैं। बचाव के लिए हेलमेट पहनना, सीट बेल्ट लगाना, शराब पीकर वाहन न चलाना और बुजुर्गों द्वारा सावधानी बरतना जरूरी है। सभी मध्यम से गंभीर सिर की चोट के मामलों को न्यूरोसर्जरी सुविधा वाले अस्पताल में तुरंत भेजना चाहिए। सिर की चोटें रोकी जा सकती हैं, समय पर इलाज से ठीक की जा सकती हैं। जरूरत है तो सिर्फ जागरूकता और सतर्कता की।

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