इतने सुकून के साथ जुलूस निकालने वालों को “थैंक यू” कहना तो बनता है

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उत्तरप्रदेश 

इतने सुकून के साथ जुलूस निकालने वालों को “थैंक यू” कहना तो बनता है

सीनियर रिपोर्ट -मुशाहिद रफ़त

✍️…..यह कहना अच्छा तो नहीं लगता मगर पिछले कुछ बरसों से शरीफ़ बरेली में जुलूस-ए-मुहम्मदी और जुलूस-ए-ग़ौसिया इज़हार-ए-अक़ीदत के बजाय तूफ़ान-ए-बदतमीज़ी में तब्दील होते जा रहे थे। इन जुलूसों में दिल दहला देने वाले डी.जे. के शोर पर कूदते-फाँदते लड़कों ने वो हुड़दंग किया कि आम लोग तंग आ गए थे। वो चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहे थे। मगर 15 अक्तूबर 2024 की दोपहर सैलानी के रज़ा चौक से जो जुलूस-ए-ग़ौसिया निकला, उसने पूरा मंज़र ही बदल डाला।

इस जुलूस में सिर्फ़ चार-पाँच अंजुमनों को शामिल किया गया जो तयशुदा वक़्त पर बिना डी.जे. के पहुँची थीं। डी.जे. लाने वाले गिरोहों को बैरंग लौटा दिया गया। नतीजा यह कि क़दीमी रास्तों से होता हुआ यह जुलूस महज़ चार घंटों में पूरा हो गया। ट्रैफ़िक भी साथ-साथ चलता रहा। न शोर-शराबा, न हंगामा और न कोई झगड़ा

असल में पिछले महीने पुराना शहर में निकले ईद मीलादुन्नबी के जुलूस में हुड़दंगियों ने सारी हदें पार कर डाली थीं। उस जुलूस में सुबह सादिक़ के वक़्त भी डी.जे. का हंगामा जारी रहा था। यहाँ तक कि जब लोग मस्जिदों और घरों में फ़ज्र की नमाज़ अदा कर रहे थे तब भी लड़के डी.जे. पर कूदते-फाँदते रहे। सभी गुज़ारिशें, सारी अपीलें और हिदायतें बेकार और बेमाना साबित हुई थीं। जुलूस में शामिल हुड़दंगियों के वीडियो कई दिनों तक सोशल मीडिया पर वायरल होते रहे थे।

उस जुलूस के ठीक एक महीने बाद पुराना शहर में ही जुलूस-ए-ग़ौसिया निकलना था, जिसकी क़यादत दरगाह आला हज़रत के सज्जादानशीं मुफ़्ती अहसन रज़ा क़ादरी करते हैं। ईद मीलादुन्नबी के जुलूस में तूफ़ान-ए-बदतमीज़ी की ख़बरें मिलने के बाद उन्होंने साफ़ कह दिया था कि जुलूस-ए-ग़ौसिया में किसी भी अंजुमन को डी.जे. लाने की इजाज़त नहीं होगी और जुलूस दोपहर ठीक 2 बजे शुरू हो जाएगा। ये सब मुमकिन बनाने के लिए पुलिस प्रशासन के साथ बैठकों के कई दौर हुए, जिनका असर यह रहा कि रास्ते की तमाम पुलिस चौकियों पर डी.जे. वाली अंजुमनों को रोक लिया गया। दोपहर 2 बजे तक बिना डी.जे. वाली चार-पाँच अंजुमनें रज़ा चौक पहुँचीं, जिन्हें लेकर अहसन मियाँ चल दिए। वक़्त की पाबंदी का इतना ख़्याल रखा गया कि बाद में बिना डी.जे. के पहुँचने वाली अंजुमनें भी शरीक नहीं हो सकीं। उनसे माज़रत करते हुए कहा गया कि अगली साल वक़्त से आएं तो साथ चलेंगे।

ईमानदार कोशिशों के साथ निकाले गए इस एक जुलूस ने बहुत सारी ख़ुराफ़ातों को ख़त्म कर दिया। लिहाज़ा, अमनपसंद लोगों का इतना फ़र्ज़ तो बनता है कि इस पुरफ़ितन दौर में ऐसा कर दिखाने वालों का दिल से शुक्रिया अदा करें। इसके साथ ही उम्मीद करनी चाहिए कि अगले साल ईद मीलादुन्नबी के जुलूस में भी यही सूफ़ियाना रवायत बरक़रार रहेगी। यह उम्मीद भी करनी चाहिए कि जुलूस में डी.जे. को पुरानी परम्परा बताकर ज़िद करने वालों को भी अक़्ल आएगी और वो भी तहज़ीब के दायरे में रहकर शरीक होंगे।

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